What is fiscal deficit in Hindi?
राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) उस राशि को संदर्भित करता है जिसके द्वारा किसी वित्तीय वर्ष में सरकार का कुल व्यय उसके कुल राजस्व से अधिक हो जाता है। दूसरे शब्दों में, यह सरकार की आय और उसके खर्च के बीच का अंतर है।
राजकोषीय घाटा तब होता है जब सरकार करों, शुल्कों और राजस्व के अन्य स्रोतों से जितना पैसा कमाती है उससे अधिक खर्च करती है। घाटे को वित्त करने के लिए, सरकार को या तो धन उधार लेना चाहिए या अपने भंडार का उपयोग करना चाहिए।
राजकोषीय घाटे का अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हो सकते हैं। एक ओर, एक राजकोषीय घाटा सरकारी खर्च में वृद्धि करके आर्थिक विकास को प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे रोजगार सृजन, वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती मांग और उच्च कर राजस्व प्राप्त हो सकता है। दूसरी ओर, एक बड़े और लगातार राजकोषीय घाटे से मुद्रास्फीति, मुद्रा का अवमूल्यन, और कर्ज का निर्माण हो सकता है जो लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है।
इसलिए, राजकोषीय घाटे का प्रबंधन व्यापक आर्थिक नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू है और अर्थशास्त्रियों, निवेशकों और नीति निर्माताओं द्वारा इसकी बारीकी से निगरानी की जाती है। राजकोषीय नीति का लक्ष्य आर्थिक स्थिरता और विकास को सुनिश्चित करते हुए सरकारी राजस्व और व्यय के बीच एक स्थायी संतुलन बनाए रखना है।
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FAQs – Frequently Asked Questions
Q: वित्तीय घाटा क्या होता है?
A: वित्तीय घाटा एक ऐसी स्थिति है जब एक सरकार के खर्च उसकी आय से अधिक होते हैं। इससे सरकार को उचित राजनीतिक और आर्थिक नीतियों के बारे में सोचना पड़ता है।
Q: वित्तीय घाटे के क्या प्रकार होते हैं?
A: वित्तीय घाटे दो प्रकार के होते हैं – अरबपति वित्तीय घाटा और करोड़पति वित्तीय घाटा। अरबपति वित्तीय घाटा जब होता है जब वित्तीय घाटा एक अरब रुपए से अधिक होता है और करोड़पति वित्तीय घाटा जब वित्तीय घाटा एक करोड़ रुपए से अधिक होता है।
Q: वित्तीय घाटा को कैसे निर्धारित किया जाता है?
A: वित्तीय घाटा को आय और खर्च के अंतर से निर्धारित किया जाता है। आय विभिन्न स्रोतों से हो सकती है, जैसे कि कर, लाभ या बिक्री। वहीं, खर्च भी विभिन्न विभागों और आर्थिक उपयोगों के लिए किए जाते हैं।